स्वामी दयानन्द सरस्वती जी

स्वामी दयानन्द सरस्वती जी का प्राकट्य 12 फरवरी 1824 को गुजरात में हुआ | उनके पिता का नाम अंबाशंकर (करसन जी तिवारी ) व माता का नाम अमृतबाई था | जिस समय भारत में पाखण्ड एवं मूर्ति पूजा का बोल बाला था |जिस समय भारत में उस समय स्वामी जी ने समाज का मार्ग दर्शन किया एवं वेदों के प्रचार -प्रसार पर बल दिया |उन्होने एक ऐसे समाज की सस्थापना की जिसके बिचार सुधारवादी और प्रगतिशील थे , जिस आर्य – समाज के नाम से जाना जाता है | आज आर्य – समाज के नाम से जाना जाता है | आज समस्त विश्व में वे आर्य -समाज के सन्थापक
के रूप में प्रख्यात है |
भारत के वे पहले व्यक्ति थे जिन्होने स्वराज्य की लड़ाई शुरू की | इस संग्राम को 1876 में “भारतीयों का भारत ” नाम दिया गया | महान बिचारक और भारत के राष्ट्रपति एस. राधाकृष्ण ने उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता ” कहा |
स्वामी श्रद्धानन्द, पंडित लेख राम, पंडित गरुदन्त विद्यार्थी, वीर सावरकर, लाला हरदयाल, राम प्रसाद बिस्मिल, महात्मा, हंसराज एम् लाला लाजपत राय इत्यादि प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी भी उनसे प्रभावित होकर उनके अनुयायी के रूप में शामिल हुए |
30 अक्तूबर 1883 को भारती के इस अद्वितीय सपूत ने शरीर -त्याग की परम्परा को धारण किया |

स्वामी श्रद्धानन्द जी

स्वामी श्रद्धानन्द जी का जन्म 22 फरवरी 1856 को पंजाब के जलन्धर जिले में हुआ | उनके बचपन का नाम मुंशीराम था | उनके पिता का नाम लाला नानक चन्द था | किन्तु बाद में स्वामी दयानन्द जी प्रभावित होकर आर्य समाज की शिछाओ का प्रसार किया एव सन्यास ग्रहण करके स्वामी श्रद्धानन्द जी के नाम से प्रख्यात हुए | अपना सर्वस्व त्याग कर उन्होने गरूकुल कांगड़ी के अतिरिक्त कई अन्य स्थानो पर गरूकुल शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की और हिन्दू समाज को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की | 23 दिसम्बर 1926 को नया बाजार स्थित उनके निवास स्थान पर अब्दुल रसीद नामक एक उन्मादी ने धर्म -चर्चा के बहाने उनके कछ में प्रवेश करके गोली मारकर इस महान विभूति की हत्या कर दी | ऐसा पाप करने पर उस उन्मादी को दी गई |